दुनिया बहुत तेजी से दो धड़ों में बंट रही है. इसकी शुरुआत करीब तीन साल पहले शुरू हुए रूस और यूक्रेन युद्ध के साथ हुई, जब यूक्रेन के समर्थन में अमेरिका और पश्चिमी देश एक साथ आए. वहीं चीन और उत्तर कोरिया जैसे देश रूस के साथ खड़े दिखाई दिए. जैसे-जैसे युद्ध की आंच पश्चिम एशिया की तरफ बढ़ी दुनिया में कुछ और देश इन गुटों में शामिल होने लगे.
वर्तमान में दो धड़ों में बंटती दुनिया की सामरिक स्थिति द्वितीय विश्व युद्ध के बाद शुरू हुए शीत युद्ध (कोल्ड वॉर) की याद दिलाती है. जब अमेरिका और सोवियत रूस के बीच शुरू हुई प्रतिस्पर्धा में दुनिया दो गुटों में बंट गई थी. एक तरह से कोल्ड वार विचारधाराओं की लड़ाई थी, जिसमें एक तरफ थे अमेरिका की अगुवाई वाले पूंजीवादी देश तो दूसरी तरफ सोवियत रूस के समर्थन में साम्यवादी विचारधारा वाले देश. हालांकि, इस स्थिति में भी कुछ देश ऐसे थे, जिन्हें तीसरी दुनिया के देश कहा गया. चलिए जानते हैं ये देश कौन से थे और इन्हें तीसरी दुनिया के देश क्यों कहा गया?
दो खेमों में बंटती जा रही थी दुनिया
यूनियन दूसरे विश्व युद्ध के बाद अमेरिका और सोवियत संघ तब के सबसे ताकतवर देश थे. दोनों देश पूरी दुनिया में अपना वर्चस्व कायम करने के लिए अपनी विचारधारा का विस्तार कर रहे थे. विचारधारओं की इसी लड़ाई ने दुनिया को जंग का मैदान बना दिया. दुनिया के देशों में सत्ता परिवर्तन होने लगा, कई देश गृहयुद्ध के चपेट में आ गए. वहीं अमेरिका और सोवियत यूनियन सीधे तौर पर जंग न लड़कर अलग-अलग क्षेत्रों में अपनी ताकत बढ़ाने लगे. यह वह दौर था जब दो महाशक्तियों के बीच स्पेस में सैटेलाइट भेजने की होड़ लग गई, दोनों देश परमाणु हथियारों की संख्या बढ़ाने में लगे थे. अमेरिका और सोवियत यूनियन के बीच हुई इस वर्चस्व की जंग में दुनिया दो खेमों में बंट गई थी. पहली दुनिया के देश उन्हें कहा गया जो अमेरिका के साथ थे, वहीं दूसरी दुनिया के देश वे थे जिन्होंने सोवियत यूनिवन का समर्थन किया था.
कौन थे तीसरी दुनिया वाले देश?
शीत युद्ध के समय कुछ देश ऐसे थे, जो न्यूट्रल थे. वे न तो अमेरिका के साथ थे और न ही सोवियत यूनियन के साथ. इन देशों को ही तीसरी दुनिया के देश कहा गया. ये ज्यादातर वे देश थे जो आर्थिक रूप से कमजोर, गैर औद्योगिक और विकासशील देश थे. तीसरी दुनिया के देशों में अफ्रीका, लैटिन अमेरिका, ओशिनिया और कुछ एशियाई देश भी शामिल थे. जहां तक भारत का सवाल है तो भारत को भी तीसरी दुनिया वाले देशों में शामिल किया जा सकता है. हालांकि, भारत वह पहला देश था, जिसने पहली बार गुट निरपेक्ष आंदोलन का प्रतिनिधित्व किया था.