दिल्ली के साकेत कोर्ट ने एक पति को उसकी पत्नी की आत्महत्या के लिए दहेज उत्पीड़न के आरोपों से बरी कर दिया है. एडिशनल सेशन जज सचिन सांगवान ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अभियोजन पक्ष आरोपी के खिलाफ ठोस सबूत पेश करने में नाकाम रहा. मृतका, जिसने जून 2014 में आत्महत्या की थी, के पिता के दावों को अदालत ने सामान्य मानवीय व्यवहार से असंगत बताया.
कोर्ट ने खड़े किए पिता की गवाही पर सवाल
शिकायत में कहा गया था कि विवाह के बाद आरोपी ने दहेज की मांग की और पत्नी को प्रताड़ित किया. हालांकि, पिता ने स्वीकार किया कि सगाई या विवाह के समय कोई दहेज मांग नहीं की गई थी. विवाह के छह महीने बाद पत्नी पांच महीने तक मायके रहीं, लेकिन उस दौरान उन्होंने दहेज उत्पीड़न की शिकायत नहीं की. जज ने टिप्पणी की यह आश्चर्यजनक है कि अचानक इतनी बड़ी मांग कैसे उठी, जबकि शुरुआत में कोई दबाव नहीं था.
कोर्ट ने रिश्तेदारों के बयान हुए खारिज
मामले में मृतका के कुछ रिश्तेदारों ने भी गवाही दी, लेकिन अदालत ने उनके बयानों को सुनी-सुनाई बातों पर आधारित और अविश्वसनीय ठहराया. जज ने कहा कि यदि दहेज की मांगें वास्तव में होतीं तो पिता अपने भाई या अन्य परिजनों से इसकी शिकायत जरूर करते. लेकिन अन्य गवाहों ने ऐसी किसी मांग का जिक्र नहीं किया.
बेरोजगारी थी विवाद का कारण ?
आरोपी के खिलाफ दर्ज चार्जशीट में कहा गया कि पति-पत्नी के झगड़े का मुख्य कारण आरोपी का बेरोजगार होना था. अदालत ने इस तथ्य पर भी गौर किया कि मृतका ने ससुराल में बहुत कम समय बिताया, जिससे प्रताड़ना का आरोप संदिग्ध लगता है.
IPC की धाराएं और अभियोजन की चूक
आरोपी पर आइपीसी की धारा 304बी (दहेज मृत्यु) और 498ए (पति या ससुराल वालों द्वारा क्रूरता) के तहत मुकदमा चलाया गया था. हालांकि, अदालत ने कहा कि विवाह के सात वर्षों के भीतर असामान्य मृत्यु होने के बावजूद, दहेज संबंधी आरोप साबित नहीं हुए.
साकेत कोर्ट ने दिया संदेह का लाभ
साकेत कोर्ट के जज ने फैसले में कहा कि आपराधिक न्याय प्रणाली में संदेह का लाभ आरोपी का मूल अधिकार है. अभियोजन पक्ष के सबूतों में कमी और गवाही की कमजोरियों के चलते आरोपी को बरी करना जरूरी था.