जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने बुधवार को 25 किताबों के प्रकाशन और बिक्री पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है. सरकार का कहना है कि ये किताबें झूठे विमर्श को बढ़ावा देती हैं, युवाओं को भड़काती हैं और आतंकवाद का महिमामंडन करती हैं.
इनमें कुछ नामचीन लेखकों जैसे मौलाना मौदादी, अरुंधति रॉय, एजी नूरानी, विक्टोरिया स्कोफील्ड और डेविड देवदास की किताबें भी शामिल हैं. गृह विभाग की ओर से जारी आदेश में कहा गया है, ‘सरकार के संज्ञान में आया है कि कुछ साहित्य जम्मू-कश्मीर में झूठे विमर्शों और अलगाववाद का प्रचार करते हैं.’
बयान में कहा गया है कि जांच और विश्वसनीय खुफिया जानकारी के आधार पर उपलब्ध साक्ष्य ‘स्पष्ट रूप से संकेत देते हैं’ कि युवाओं के हिंसा और आतंकवाद में शामिल होने की एक बड़ी वजह यह साहित्य है. इसे ऐतिहासिक या राजनीतिक टिप्पणी के रूप में फैलाया जाता है और यह धीरे-धीरे युवा दिमाग पर असर डालता है.
आदेश के मुताबिक, “ऐसा साहित्य भारत के खिलाफ युवाओं को गुमराह करने, आतंकवाद का महिमामंडन करने और हिंसा भड़काने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.”
इन किताबों पर लगा प्रतिबंध
जिन किताबों पर प्रतिबंध लगाया गया है, उनमें मौलाना मौदादी की अल जिहादुल फिल इस्लाम, क्रिस्टोफर स्नेडेन की इंडिपेंडेंट कश्मीर, डेविड देवदास की इन सर्च ऑफ ए फ्यूचर, विक्टोरिया स्कोफील्ड की कश्मीर इन कॉन्फ्लिक्ट, ए.जी. नूरानी की कश्मीर डिस्प्यूट (1947–2012), अरुंधति रॉय की आजादी शामिल हैं.
प्रकाशन और बिक्री दोनों पर रोक
गृह विभाग ने सभी जिलों के अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि इन किताबों को बाजार से हटाया जाए और इन्हें आगे किसी भी रूप में प्रकाशित या बेचा न जाए.
सरकार का यह फैसला कई हलकों में चर्चा का विषय बना हुआ है. जहां एक तरफ इसे युवाओं को गुमराह होने से बचाने की कोशिश बताया जा रहा है, वहीं कुछ लोग इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सवाल के रूप में देख रहे हैं.