22 अप्रैल को जम्मू कश्मीर के पहलगाम में आतंकियों ने टूरिस्ट्स को अपना निशाना बनाया था. पहलगाम में हुए आतंकी हमले में 26 से ज्यादा लोग मारे गए और कई लोग घायल हुए. पहलगाम में हुए हमले को लेकर पूरे देश में आक्रोश का माहौल है और भारत सरकार ने पाकिस्तान के खिलाफ कड़े कदम उठाए हैं. पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव काफी बढ़ गया है, जिसके बाद परमाणु हथियारों को लेकर चर्चा भी तेज हो गई है. ऐसे में आज हम आपको एक ऐसे देश के बारे में बताने जा रहे हैं, जो एक परमाणु ताकत था, लेकिन उसने खुद ही अपने परमाणु हथियारों को नष्ट कर दिया.
परमाणु हथियार तबाह करने वाला देश
दुनिया में एक ऐसा देश भी था, जिसने खुद कई परमाणु हथियार तैयार करने के बाद खुद ही उन्हें तबाह कर दिया था. यह देश एक गुप्त प्रोजेक्ट पर काम कर रहा था और उसने परमाणु हथियार हासिल कर लिए थे. 24 मार्च 1993 को दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति एफ. डब्ल्यू. डी क्लार्क ने खुलासा किया कि यह देश दक्षिण अफ्रीका ही है, जिसने गुप्त रूप से छह परमाणु बम बना लिए थे. लेकिन अब उन्हें नष्ट कर दिया गया है.
1948 में इस देश ने एटॉमिक एनर्जी बोर्ड बनाया और परमाणु एनर्जी पर काम शुरू किया. 1960 में प्रिटोरिया के पास पेलिंडाबा नाम की एक परमाणु फैसिलिटी बनाई गई. दक्षिण अफ्रीका के पास यूरेनियम की भरपूर मात्रा थी, जिससे परमाणु बम आसानी से बनाए जा सकते थे, 1974 में एक रिपोर्ट ने सुझाव दिया कि दक्षिण अफ्रीका बम बना सकता है, तब सरकार ने एक गुप्त योजना शुरू की.
दक्षिण अफ्रीका पहला परमाणु हथियार 1982 में बना और कुल 6 हथियार बनाए गए और उनकी ताकत लगभग हिरोशिमा और नागासाकी जैसे बम जितनी थी. लेकिन इनका कोई परीक्षण नहीं किया गया था. हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि ये पूरी तरह काम करते थे. लेकिन अंत में अंतरराष्ट्रीय हालात बदल गए. इन हालात में परमाणु हथियार पर रोक ना सिर्फ जरूरी हो गया था, बल्कि यह दक्षिण अफ्रीका के अंतरराष्ट्रीय संबंधों के लिए मुसीबत बन गया था.
परमाणु हथियार तबाह करने का कारण
अंतरराष्ट्रीय हालात बदलने और परमाणु हथियार तबाह करने के पीछे कई कारण थे. जैसे अमेरिका ने परमाणु हथियारों से जुड़ी जानकारियों के दक्षिण अफ्रीका से आदान-प्रदान पर रोक लगा दी थी. 1978 में अमेरिका ने एक कानून पारित कर दिया था, जिसके तहत उन देशों को परमाणु तकनीक नहीं दी जा सकती थी जो एनपीटी (परमाणु अप्रसार संधि) का हिस्सा नहीं थे. शीत युद्ध के दौर में दुनिया दो हिस्सों में बंटी थी और दक्षिण अफ्रीका को उस दौर की दो महाशक्तियों, अमेरिका और रूस में से किसी ने भी समर्थन नहीं दिया था.
इसके साथ ही 1977 में जब दक्षिण अफ्रीक भूमिगत परमाणु परीक्षण की तैयारी कर रहा था तब अमेरिका और सोवियत संघ ने मिलकर उसे रोक दिया था. इसके अलावा अपनी रंगभेद की नीति की वजह से भी दक्षिण अफ्रीका अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग था और उस पर हथियार खरीदने पर प्रतिबंध लगाए जा रहे थे. साथ ही हमला होने की स्थिति में उनका देश विदेशी मदद पर निर्भर नहीं रह सकता था.
ऐसे में जब 1989 में डी क्लार्क सत्ता में आए तो उन्होंने परमाणु कार्यक्रम पर रोक लगाना शुरू कर दिया. इसमें बना लिए गए बमों को तबाह करना और परमाणु प्लांटों को बंद किया जाना भी शामिल था. इसे इस स्तर पर ले आया गया कि इससे बम न बनाए जा सके. इसके साथ-साथ सरकार ने एनपीटी का हिस्सा बनने की प्रक्रिया शुरू की. देश में आंतरिक राजनीतिक सुधार भी शुरू हुए और रंगभेद को समाप्त कर दिया गया.