दुनिया की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट को आज हर कोई जानता है, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इसका असली नाम क्या था, इसे किसने खोजा और इसका नाम “एवरेस्ट” क्यों पड़ा. इस चोटी को 19वीं सदी में अंग्रेजों ने खोजा, जब भारत में “ग्रेट ट्रिगोनोमेट्रिकल सर्वे” नाम से जमीन की ऊंचाई नापने का काम चल रहा था. उस समय अंग्रेजों ने इस चोटी को “पीक XV” नाम दिया था, क्योंकि ये बिना नाम की एक ऊंची चोटी के तौर पर सामने आई थी.
इस शख्स ने 1852 में की थी एवरेस्ट की ऊंचाई की गणना
साल 1852 में सर्वे टीम के एक होनहार भारतीय गणितज्ञ राधानाथ सिकदर ने पहली बार गणना करके बताया कि यह चोटी दुनिया की सबसे ऊंची चोटी है. इस खबर ने अंग्रेज अधिकारियों को चौंका दिया, क्योंकि इससे पहले कंचनजंघा को सबसे ऊंचा माना जाता था. इसके बाद ब्रिटिश भारत के सर्वेयर जनरल एंड्रयू वॉ ने इस चोटी का नाम अपने पूर्व अधिकारी सर जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर रखने की सिफारिश की.
कैसे रखा गया नाम
दिलचस्प बात ये है कि सर जॉर्ज एवरेस्ट खुद नहीं चाहते थे कि यह चोटी उनके नाम पर रखी जाए. वे मानते थे कि स्थानीय भाषा में जो नाम है, उसे ही अपनाया जाना चाहिए. लेकिन इसके बावजूद साल 1865 में रॉयल जियोग्राफिकल सोसाइटी ने इसे आधिकारिक रूप से Mount Everest नाम दे दिया. आज भी नेपाल में इसे सागरमाथा कहा जाता है, जिसका मतलब होता है “आसमान की चोटी”, वहीं तिब्बत में इसका नाम है चोमोलुंगमा, जिसका अर्थ होता है “दुनिया की माँ”. लेकिन अंग्रेजों के दिए नाम “एवरेस्ट” को ही पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा पहचाना जाता है.
क्यों खास है माउंट एवरेस्ट
माउंट एवरेस्ट सिर्फ एक पहाड़ नहीं, बल्कि ये धरती की सबसे ऊंची चोटी है. इसकी ऊंचाई है 8,848.86 मीटर, यानी करीब 29,031 फीट. यह नेपाल और चीन (तिब्बत) की सीमा पर स्थित है. नेपाल में इसे सागरमाथा कहा जाता है, माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई ही इसे दुनिया के लिए खास बनाती है, क्योंकि इससे ऊंचा धरती पर कुछ भी नहीं है.
यह चोटी दुनिया भर के पर्वतारोहियों का सपना है. हर साल हजारों लोग इसे फतह करने की कोशिश करते हैं, लेकिन यह सफर आसान नहीं होता. एवरेस्ट पर चढ़ाई करना जानलेवा भी हो सकता है, क्योंकि वहां ऑक्सीजन बहुत कम होती है, तापमान माइनस में रहता है, बर्फीले तूफान चलते हैं और बर्फ की दरारें जान ले सकती हैं.