कश्मीर ही नहीं ये ‘आम’ भी है भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव का मुद्दा, 1981 से झगड़ रहे हैं दोनों देश…

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भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर का मुद्दा आजादी के बाद से भारत-पाक विभाजन के बाद से चला आ रहा है. इसको लेकर युद्ध भी हो चुका है और तनाव की स्थिति तो दोनों देशों के बीच में बनी ही रहती है. हाल ही में पहलगाम हमले के बाद से दोनों देशों के बीच में जमकर तनाव देखने को मिला था. जिसका जवाब भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के रूप में दिया था. लेकिन क्या आपको पता है कि दोनों देशों के बीच में सिर्फ कश्मीर को लेकर ही नहीं बल्कि आम को लेकर भी तकरार हो चुकी है.

जी हां वही आम जिसे फलों का राजा कहा जाता है. इस विवाद की नींव तब पड़ी जब 80 के दशक में पाकिस्तान के राष्ट्रपति जिया उल हक ने भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को आम भेंट के रूप में दिए. बस यहीं से एक नई तकरार का जन्म हो गया. चलिए इस बारे में थोड़ा विस्तार से जाना जाए.

 

किस आम पर दावा ठोंकता है पाकिस्तान

कहते हैं कि आम में जरूर कोई ऐसी खास बात होती है, जिससे कि यह राजा होकर भी गरीबों को मयस्सर हो जाता है. थोड़ी की कीमत में सबके हिस्से आता है और कभी-कभी विवादों को भी जन्म दे जाता है. दिल्ली से करीब 20 किलोमीटर दूर एक जिला है बागपत, जहां एक गांव है रटौल. यह गांव आम की एक खास किस्म के लिए मशहूर है. इस आम का नाम भी गांव के नाम पर पड़ा है. रटौल के आम को लेकर 80 के दशक से भारत और पाकिस्तान में खींचतान चली आ रही है. सालों से पाकिस्तान का दावा है कि यह आम भारत का नहीं बल्कि पाकिस्तान का है. विदेश में भी रटौल आम की भारी डिमांड है.

जब आम ने कराई पाकिस्तान की फजीहत

हालांकि पाकिस्तान इस पर अभी तक कोई मजबूत दावा पेश नहीं कर पाया है. लेकिन जब जनरल जिया उल हक ने इंदिरा गांधी को आम भेंट किए तो उन्होंने आम का नाम रटौल बताया. जिया उल हक ने यह दावा किया कि ये आम सिर्फ पाकिस्तान में मिलते हैं. उस दौर में यह वाकया अखबारों तक छपा तो रटौल के लोगों ने इस पर आपत्ति जताई. उस वक्त गांव के कुछ लोग कैबिनेट मिनिस्टर चौधरी चांदराम से मिले और उनको पूरा बात बताई. जब इंदिरा गांधी को इस बात की जानकारी हुई तो उन्होंने तुरंत एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई और पाकिस्तान के झूठ का पर्दाफाश किया.

पाकिस्तान कैसे पहुंचा रटौल आम

उस वक्त पाकिस्तान की खूब किरकिरी हुई और लोग रटौल के आम के बारे में और ज्यादा जानने की कोशिश करने लगे. इस आम के जरिए गांव को खास पहचान मिली. अब सवाल यह है कि रटौल आम पाकिस्तान कैसे पहुंच गया. दरअसल रटौल गांव आजादी से पहले पाकिस्तान जा चुका था. रटौल मैंगे प्रोड्यूसर एसोसिएशन के सचिव जुनैद फरीदी की मानें तो उनके दादा अफाक फरीदी ने ही रटौल से आम के कुछ पौधे मुल्तान और मीरपुर की नर्सरी में भेजे थे. उस वक्त देश का विभाजन नहीं हुआ था. इसीलिए नर्सरी से पौधों का लेन-देन चला करता था. तब वो पौधा पाकिस्तान में ढल गया और फलने-फूलने लगा.

 

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